बारिशों को खिड़कियों से देखते हैं बोन्साई
चमकने लगे कैसे कट छंट कर फर्श पे
पहाड़ भी इक दिन बन जाते हैं बोन्साई
अपना कद कुछ और बढ़ा ले तू इन्सां
तेरे लिए तो हदों में सिमटते हैं बोन्साई
परिंदों की चहचाहट तिनकों को तरसते
दम तोड़ती ख्वाहिशों के सन्नाटे हैं बोन्साई
इकठ्ठा किया मैंने आकाश जो मुट्ठी में
मालूम हुआ कि खुदा भी होते हैं बोन्साई
इनके सवालों के जवाब दें भी तो कैसे
आधे अधूरे सवाल जो पूछते हैं बोन्साई
मन के गमलों पर उगाये झूठ के पेड़
रग रग में अब शोरिशें बरपाते हैं बोन्साई
वाह ...बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंलाज़वाब 👍
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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