मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दिए






कुछ  जल  गए  यूँ  मेहमानी  के  दिए 
कि  न  इलज़ाम  हो  उनकी  मेजबानी  के  दिए 

ये  गुल  ए  शफक  और  ये  रंगीन  समां 
यादों  के  काफिले  मेरी  कहानी  के  दिए 

खुदा  मेरे  ख्वाब  दिखा  धीरे  धीरे 
पारिज़ाद  ये  चश्म  ए  नूरानी  के  दिए 

अल्फाज़  बिखरे  हैं  पड़े  गोशा  ए  ज़हन 
सफहों  पर  बिछा  दूं  मानी  के  दिए 

बेपरवाह  पैरों  में  बूंदों  की  पायल 
बारिश  में  जल  गए  जवानी  के  दिए 

परिंदे  आ  बैठे  हैं  वीरान  पेड़  पर 
मज़ार  पर  जल  उठे  जिंदगानी  के  दिए