वक्ती साअतों को आज ज़मूद कर दूँ
ज़िन्दगी आ तुझे मैं नेस्तनाबूद कर दूँ
दरिया किनारे पड़ा है सीपियों का ढेर
दर्द के हर कतरे को वजूद कर दूँ
उड़ता फिर रहा है बेसबब कब से
क्यूँ न बादल को आज बूंदा बूँद कर दूँ
क़र्ज़ बकाया है अब तक गुलशन का
अदा पहले खुशबुओं का सूद कर दूँ
रोज़ रोज़ निगला करती है आफताब
शब में छेद कर आज इसे सुबूत कर दूँ
Bahut Umda....
जवाब देंहटाएंवाह ... बागी तेवर लिए ... लाजवाब शेर हैं सभी ...
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
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