होता नहीं है छूना आसान सरहदें
कर देतीं हैं जिस्म लहूलुहान सरहदें
सूनी आँखें हैं और खुश्क हैं होंठ
तपते इंसानों सी रेगिस्तान सरहदें
हैं इतनी बे -आबरू क्यूँ न रोयें
जज्बातों का होती हैं तूफ़ान सरहदें
हवा भी रुक जाती है यहाँ दो घड़ी
कर देंगी इसे भी कुर्बान सरहदें
गर्म लहू बहते बहते जमने लगा है
बर्फ की परतों सी बेईमान सरहदें
Hi Minoo,
जवाब देंहटाएंIts really good to be here.
Well written poem though
few words i could not catch
Hey did you migrate all your knol?
Would like to hear from you
With all good wishes
Keep inform
Keep writing
Best
PV
Hello , thx for the comment.
जवाब देंहटाएंYes I migrated them long back to wordpress , did it manually
बहुत बढ़िया ...ये सरहदे ही तो है जो कितनो को खून पी चुकी हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंये अपनी सरहदें ही हैं ... जहाँ घर के घर शहीद हुए
जवाब देंहटाएंहाँ रश्मि जी
हटाएंक्या बात है मीनू जी ...!!
जवाब देंहटाएंन सुरों की सरहदें
न शब्दों की सरहदें
न हवाओं की सरहदें
न पक्षियों की सरहदें
सरहदें मुल्क की
मैं होना चाहता हूँ
सुर
शब्द
हवा
और
पक्षी ....!!
आपकी पंक्तियों से सीमा सुरक्षा बल के आई. जी. बाथम साहब की पंक्तियाँ याद आ गईं ....
यह तो अदभुत पंक्तियाँ हैं हरकीरत , कुछ कुछ तुम्हारे लिखने के अंदाज़ से मिलता है , मैंने तुम्हारा इंटरव्यू नहीं देखा , कोई लिंक है तो भेजना
जवाब देंहटाएंBahut Sunder....Hridaysparshi Panktiyan
जवाब देंहटाएंइन सरहदों को ही मिटाना है. बहुत सुंदर और अद्भुत प्रस्तुति.
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