गुरुवार, 26 जुलाई 2012

सरहदें





होता  नहीं है छूना आसान सरहदें 
कर देतीं हैं जिस्म लहूलुहान सरहदें 

सूनी आँखें  हैं और खुश्क  हैं  होंठ 
तपते इंसानों सी रेगिस्तान सरहदें 

हैं इतनी बे -आबरू  क्यूँ  न  रोयें 
जज्बातों का होती  हैं तूफ़ान  सरहदें 

हवा भी रुक जाती है यहाँ दो घड़ी 
कर देंगी  इसे भी कुर्बान  सरहदें 

गर्म लहू बहते बहते जमने लगा है 
बर्फ की परतों सी बेईमान सरहदें


10 टिप्‍पणियां:

  1. Hi Minoo,
    Its really good to be here.
    Well written poem though
    few words i could not catch
    Hey did you migrate all your knol?
    Would like to hear from you
    With all good wishes
    Keep inform
    Keep writing
    Best
    PV

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  2. Hello , thx for the comment.
    Yes I migrated them long back to wordpress , did it manually

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  3. बहुत बढ़िया ...ये सरहदे ही तो है जो कितनो को खून पी चुकी हैं !

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  4. ये अपनी सरहदें ही हैं ... जहाँ घर के घर शहीद हुए

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  5. क्या बात है मीनू जी ...!!

    न सुरों की सरहदें
    न शब्दों की सरहदें
    न हवाओं की सरहदें
    न पक्षियों की सरहदें
    सरहदें मुल्क की
    मैं होना चाहता हूँ
    सुर
    शब्द
    हवा
    और
    पक्षी ....!!


    आपकी पंक्तियों से सीमा सुरक्षा बल के आई. जी. बाथम साहब की पंक्तियाँ याद आ गईं ....

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  6. यह तो अदभुत पंक्तियाँ हैं हरकीरत , कुछ कुछ तुम्हारे लिखने के अंदाज़ से मिलता है , मैंने तुम्हारा इंटरव्यू नहीं देखा , कोई लिंक है तो भेजना

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  7. इन सरहदों को ही मिटाना है. बहुत सुंदर और अद्भुत प्रस्तुति.

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