हैं आसमान की गहराईयाँ यतीम
आवाज़ दो कि हैं खामोशियाँ यतीम
शरमाते सूरज का बोझ उठाती
हो गयीं शब की रुस्वाइयाँ यतीम
निगल रहे रोज़ रोज़ आफताब इंसान
जलते जिस्मों की हैं कहानियाँ यतीम
इक सूखा पत्ता मिला था किताबों में
छोड़ आया है पीछे जवानियाँ यतीम
इक दस्तावेज़ पर हैरां है दस्तखत
छोड़ गया पीछे ज़िन्दगानियाँ यतीम
दो किनारों को मिला गयी जाते जाते
सूखती नदी की थीं खुद्दारियाँ यतीम
बहुत खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत गज़ल है ! हर शेर दिल को गहराई तक छूता है ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... इक दस्तावेज़ पर हैंरा हैं ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ...
जवाब देंहटाएंBehtreen Panktiyan....
जवाब देंहटाएंbahut hi khub--wah-wah ---di
जवाब देंहटाएंbahut hi behtreen gazal likhi aapne--badhai
meri galti pardhayn dilane ke liye bhi aapko dhanyvaad ---di
poonam
बहुत खूब!
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