जिस्म में गहरे उतर आया आकाश
चाँद मगर साथ नहीं लाया आकाश
टकराता रहता है दिल के कोनों से
संभालो उसे देखो लड़खड़ाया आकाश
उस पार से आई है आज कैसी सदा
झूम झूम के नाचा और गाया आकाश
कुछ तो नज़र आया है अँधेरे से परे
बेवजह ही नहीं झिलमिलाया आकाश
सहम गाया है देखकर दिल के सन्नाटे
आ तो गया पर बड़ा पछताया आकाश
आदत पड़ गयी है आफताब की इसे
इतने दिन दूर रहकर घबराया आकाश
खामोश ही सही ज़िन्दगी चलती तो है
नस नस में जब से समाया आकाश
सर्द रिश्तों को देख सहमा हुआ था
जरा सी तपिश से पिघल गया आकाश
इक दिन बैठाया था हथेली पर उसे
लकीरों को देखते ही उड़ गया आकाश
खामोश ही सही....
जवाब देंहटाएंफेसबुक न हो तो पता ही चले कि लोग इतनी खामोशी से अपनी संवेदनाओं के निशान लफ्जों के जरिए छोड़ जाते हैं।....
बढ़िया ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
वाह...बेहतरीन रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सुन्दर भाव!!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ आपकी इस रचना के बारे में, शब्द ही नहीं मिल रहे । बेहद उम्दा रचना
दिल तक उतरता ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंउस पार से आई है आज कैसी सदा
जवाब देंहटाएंझूम झूम के नाचा और गाया आकाश
कुछ तो नज़र आया है अँधेरे से परे
बेवजह ही नहीं झिलमिलाया आकाश
बहुत खूबसूरत गजल ....
बहुत खूब .... इस आकाश के दिल का हाल लिख दिया ...
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब ...
shukriya aap sabka
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