नफ़रत तो नफरत है क्या यहाँ क्या वहाँ है
हर दिल में आग है और हर तरफ धुआं है
अगर मज़हब ही इसकी वजह है तो देखो
ज़िंदा खड़ा है मज़हब और मिट रहा इंसां है
बारूद के ढेर पर खड़ा है हर आदमी
ना जाने किस गोली पर मौत का निशाँ है
ना जाने किस गोली पर मौत का निशाँ है
देश को जख्म दे रहा देश का हर आदमी
सरहदों पर जख्म खाता देश का जवाँ है
मुट्ठी भर राख की खातिर किया कमाल है
मुट्ठी भर राख की खातिर किया कमाल है
ख़ुदा के घर जाते वक़्त आखिरी निशाँ है
बदहवास से परिंदे भटक रहे हैं दर बदर
बदहवास से परिंदे भटक रहे हैं दर बदर
मिटा दिया जो तूने उनका भी आशियाँ है
अहवाल ए बशर क्या पूछ रहा है मौला
पूजा जाता बुत यहाँ जल रहा इन्सां है
अहवाल ए बशर क्या पूछ रहा है मौला
पूजा जाता बुत यहाँ जल रहा इन्सां है
मौत खुल्ला खेल और ज़िन्दगी इक हादसा
सफरनामा तुम्हारा पढ़ेगा भी तो कौन
जवाब देंहटाएंजिंदा रहेगा मजहब, मिट जाएगा इंसा...
तमाम तथाकथित व्यस्तताओं के चलते इस खूबसूरत ब्लॉग पर आना नहीं हो पाया था और बहुत कुछ छूटता जा रहा था। भला हो फेसबुक का, जहां से पता चला कि आबशार पर कुछ ताजा –ताजा आया है। जिस वक्त मैंने यह गजल पढ़ी, मैं दफ्तर में था और यकीन मानिए...इसे पढ़कर इतना सुकून मिला कि बयान नहीं कर सकता...
shukriya kirmani ji
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से सजी ..
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
shukriya sanjay
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