सांस सांस में जैसे कोई आस है जिंदा
जीते हैं हम या कोई अहसास है जिंदा
मर गया था रिश्ता फ़िर से जी उठा वो
कोई अनकही अधूरी सी आस है जिंदा
यादों को जब भी खोला तो पाया मैंनेकोई चेहरा अब भी आस पास है जिंदा
मौजें आ आकर टकरातीं हैं रोज़ रोज़फ़िर भी साहिलों में इक प्यास है जिंदा
नापाक इरादों में शामिल तुम न होना
गर कुछ ज़मीर तुम्हारे पास है जिंदा
सिर्फ धडकनें गिनना नहीं है ज़िन्दगीयूँ तो पत्थर भी पत्थर के पास है जिंदा
अच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://thodamuskurakardekho.blogspot.com/
bahut achchha likha hai
जवाब देंहटाएंshukriya
जवाब देंहटाएंफिर भी साहिलों में इक प्यास है जिंदा...
जवाब देंहटाएं...वाह, लाजवाब। बस, शिकायत यह है कि मेरे इस पसंदीदा ब्लॉग पर रचनाएं लंबे इंतजार के बाद पढ़ने को मिलती हैं।
shukriya kirmani ji , sochti hun kuch naya taza
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