दिल में मेरे इक आब शार बहने लगा
वो मुझसे पहाड़ों की बातें करने लगा
खुशबुएँ साथ लाया था फिजाओं की
रफ्ता रफ्ता नस नस में महकने लगा
आब ओ हवा रास ना आई देर तक
बन के आब ए चश्म वो उमड़ने लगा
फिर धुआं बन उड़ चला इक दिन वो
दिल बुझते शोलों सा सिसकने लगा
आब दारी निभाने आएगा वो फिर से
अक्स ए गम ए यार मुझे कहने लगा
नस-नस में महकने की बात बहुत बढ़िया और नयी है। बधाई अच्छी रचना के लिए।
जवाब देंहटाएंthx
जवाब देंहटाएं