दरिया कूज़े में कैसे समाया होगा
सहरा की प्यासी रेत से बनाया होगा
बहुत एहतियात से उठाना तुम इसे
ग़र्दिश ए मस्ती ने इसे घुमाया होगा
तूफ़ान के बाद भी निशाँ हैं बाक़ी
जरुर मौजों का क़र्ज़ बकाया होगा
सहरा की तपिश बदल गयी आग में
इक बादल भूले भटके आया होगा
अहल ए चमन एक फूल अता करना
तेरे घर तो खुशबुओं का सरमाया होगा
sunder ghazal
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 09 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर काव्य
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