मंगलवार, 13 अगस्त 2013

दरिया को कूज़े में कैसे भरूं






दरिया कूज़े में कैसे समाया होगा
सहरा की प्यासी रेत से बनाया होगा

बहुत एहतियात से उठाना तुम इसे
ग़र्दिश ए मस्ती ने इसे घुमाया होगा

तूफ़ान के बाद भी निशाँ हैं बाक़ी
जरुर मौजों का क़र्ज़ बकाया होगा

सहरा की तपिश बदल गयी आग में
इक बादल भूले भटके आया होगा

अहल ए चमन एक फूल अता करना
तेरे घर तो खुशबुओं का सरमाया होगा 







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