पहाड़ पर जमी बर्फ सा होता है मन
धीमे धीमे पिघलता रहता है मनकलेजे पर पत्थर सा रखा हो जैसे
सरकाने से हल्का होता है मन
यादों का धुआं धुंधलाने भी दो
देख शरर धुँए के सुलगता है मन
सर्द धूप के इक टुकड़े की खातिर
छत के कोनों की तरफ़ भागता है मन
सात समुंदर पार घूम आता है मन
कितने ही बंद करो जिस्म के दरीचे
बेकाबू खरगोश सा कूद जाता है मन