बुधवार, 23 मार्च 2011

सूरज






सूरज को शिकस्ता किया ये क्या किया 
दिन को रात किया और बेजिया किया 

तुम्हारी आँखों में तो बची है ताबिंदगी 
पता करो किसने बेमानी तजुर्बा किया 

खाली ज़हन का होगा फलसफा कोई 
खुदा बनने की चाह में मोज़ज़ा किया 

सूरज में जलने का मज़ा कुछ और है 
इताब में आकर मज़ा बेमज़ा किया 

जुड़ने लगे आपस में सूरज के टुकड़े 
शुआओं के आगे जब सजदा किया 

कायनात खिल उठी खुदा की फिर से 
बेवजह ही तो नहीं उसने जिया किया 


10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक सोच बहुत सुन्दर रचना

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

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  3. Bahut hi sanjeeda vichar....behad khoobsoorat prastuti...
    Suraj mein jalne ka maza aur hai...Itaab mein aakar maza bemaza kiya...

    Zindgi ke falasfe ka nichor hai aapki prastuti.

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  4. गहन अभिव्यक्ति|
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|

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  5. बहुत सुन्दर रचना|
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|

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