रविवार, 6 मार्च 2011

सड़क




अपनी तो ज़िन्दगी है यारों सड़कों पे 
कभी याद आये तो पुकारो सड़कों पे 

शमा रोशन करने चली है दूसरा घर 
डोली उठाने आओ कहारों सड़कों पे 

देखना है सफ़र घड़ी दो घडी और 
ज़रा धीमे से चलो रफ्तारों सड़कों पे

कुछ ख्वाब हुए और कुछ धुआं हुए  
मिले थे हमसफ़र हजारों सड़कों पे 

जाने कहाँ पहुँचने की जल्दी है तुम्हें 
रात भर चलते हो मुसाफिरों सड़कों पे 


13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ....बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं....

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  2. कुछ ख्वाब हुए , कुछ धुआ हुए
    मिले थे हम सफ़र हज़ारो सड़को पे ''
    सम्मानिय !
    आप को इण खूब सूरत पंक्तियों के साथ .
    नमस्कार !
    सुंदर ग़ज़ल . छोटा बहर , बड़ी ग़ज़ल .
    शुक्रिया !

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  4. लाजवाब ग़ज़ल है ... कमाल के शेर गढ़े हैं ..

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  5. बहुत सार्थक सोच...बहुत सुन्दर रचना..

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  6. सभी शेर बहुत सुन्दर मगर दूसरा और तीसरा मन को छू गये। बधाई।

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  7. बहुत ही सुन्दर.
    हर शेर लाजवाब.
    सलाम.

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  8. बहुत खूबसूरत रचना
    यथार्थ का चित्रण करती रचना। धन्यवाद|

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  9. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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