अपनी तो ज़िन्दगी है यारों सड़कों पे
कभी याद आये तो पुकारो सड़कों पे
शमा रोशन करने चली है दूसरा घर
डोली उठाने आओ कहारों सड़कों पे
देखना है सफ़र घड़ी दो घडी और
ज़रा धीमे से चलो रफ्तारों सड़कों पे
कुछ ख्वाब हुए और कुछ धुआं हुए
मिले थे हमसफ़र हजारों सड़कों पे
जाने कहाँ पहुँचने की जल्दी है तुम्हें
रात भर चलते हो मुसाफिरों सड़कों पे
बहुत सुंदर ....बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं....
जवाब देंहटाएंकुछ ख्वाब हुए , कुछ धुआ हुए
जवाब देंहटाएंमिले थे हम सफ़र हज़ारो सड़को पे ''
सम्मानिय !
आप को इण खूब सूरत पंक्तियों के साथ .
नमस्कार !
सुंदर ग़ज़ल . छोटा बहर , बड़ी ग़ज़ल .
शुक्रिया !
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंलाजवाब ग़ज़ल है ... कमाल के शेर गढ़े हैं ..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक सोच...बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंरफ्तारों! सही है?
जवाब देंहटाएंसभी शेर बहुत सुन्दर मगर दूसरा और तीसरा मन को छू गये। बधाई।
जवाब देंहटाएंsandeshpoorn rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर.
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब.
सलाम.
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंयथार्थ का चित्रण करती रचना। धन्यवाद|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..