गुरुवार, 18 नवंबर 2010

पनाहगाह







आशोब ए दिल कुछ कम है आज
क्या खारिज अज जिस्म गम है आज

रगों में जब्त हैं शोरिश ए कर्ब
सुन कर साँसें भी बेदम हैं आज

नब्ज़ ए हयात चल रही है मुसलसल
मौत भी हमनफस हमसनम है आज

दायरा ए आफाक पूरा तो कर लूँ
नुक्ता न लगाना लम्हों कसम है आज

बेनवा हवाओं सी घुस आयीं लहू में
तमन्नाओं का पनाहगाह जिस्म है आज

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