जब जब चला करती है हवाए सर्द कहीं
बरसती है दूर पहाडों पे ठंडी बर्फ कहीं
कोई कहे बहरे फ़ना कोई ऐशे दुनियाँ
हैं खुशियाँ कहीं तो है बेइंतेहा दर्द कहीं
ख़ाक में से भी भड़क उठती है चिंगारी
कर ले जब्त सीने में जज्बे ज़र्फ़ कहीं
वक़्त रहते ही दिखाओ इल्म ओ फन
पड़े पड़े हो जाये न आब ए गर्क कहीं
सब राज अफशां हो जायेंगे यकबारगी
छुपा के रखना दिल ही में वो हर्फ़ कहीं
सितारे झिलमिल नहीं करते आजकल
मानो खो गया हो इनका भी वर्क कहीं
वक्त रहते ही दिखाओ इल्म ओ फन....इतनी खूबसूरत गजल जब लंबे अंतराल के बाद पढ़ने को मिलेगी तो यही लाइन दोहरानी पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंमाफ कीजिएगा, तारीफ के लिए अलफाज नहीं हैं।
bahut bahut shukriya yusuf ji
जवाब देंहटाएंकाश! हर शेर पढ़ते हुए अपने चेहरे के भाव दिखा पाता
जवाब देंहटाएंप्रशंसा को निःशब्दता में भी शब्दों का श्रृंगार नज़र आता
Thanks Zippy , I am so happy that you liked it , it means a lot to me
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