कहा माहताब ने जाते समय बता कर तो जाया करो
कहा आफताब ने बड़ी ठण्ड है थोड़ा जल्दी आया करो
कहा माहताब ने न हों गर हम तो क्या दिन क्या रात है
कहा आफताब ने न करो इतना गुरुर उसकी कायनात है
कहा माहताब ने परेशान न करो टुकडों में बिक रहा हूँ
कहा आफताब ने धुंए और धुंध से तो मैं भी डर गया हूँ
कहा माहताब ने छतों पर यूँ खुलेआम न घूमा करो
कहा आफताब ने चोरी छुपे खिडकियों से न झाँका करो
कहा माहताब ने ओस की बूँदें तुमसे क्यूँ शर्माती हैं
कहा आफताब ने तुम्हीं पूछो मुझे तो नहीं बताती हैं
कहा माहताब ने ये हैं मेरे आंसूं इन्सां समझता पानी है
कहा आफताब ने छुपा लो दिल में आखिरी निशानी है
कहा माहताब ने तुमसे बातें करके बड़ा अच्छा लगा
कहा अफताब ने सितारों के होते भी तू मुझे तन्हा लगा
कहा महताब ने जल्दी चले जाना वक्त पर आ जाऊँगा मैं
कहा आफताब ने गर्मियों में हिसाब बराबर कर पाऊंगा मैं
क्या माहताब अब यह पूछे कि आप इतना अच्छा क्यों लिखती हैं।
जवाब देंहटाएंयकीनन, इतने दिनों बाद इतनी अच्छी नई रचना पढ़ने को मिली...शायद अच्छी चीजों के शक्ल लेने में इसीलिए वक्त लगता है।
aapka tah-e-dil se shukriya kirmani ji
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जवाब देंहटाएंचंद्रमा सूरज की वेदना संवेदना और संवाद की गवाही दे रही यह कृति
शायर की कलम को संपूर्ण प्रकृति भी एक दिन देगी सुनने की स्वीकृति
जवाब देंहटाएंचंद्रमा सूरज की वेदना संवेदना और संवाद की गवाही दे रही यह कृति
शायर की कलम को संपूर्ण प्रकृति भी एक दिन देगी सुनने की स्वीकृति
बहुत बहुत धन्यवाद संजय
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