दिल्लगियां करने लगा है मेरा आब शार
बलखाता इठलाता सा आवारा आब शार
फूल , तिनके , पत्ते सबको साथ लेकर
बन बन भटकता है बंजारा आब शार
बहुत शोर करता है रातों की तन्हाई में
संगीत की धुन सा इकतारा आब शार
ठंडी रातों गरजती बिजलियों से डरता
तन्हाइयों का मारा है बेचारा आब शार
सैलाबों सा बहता दर्द की इक कहानी है
बारिशों का मारा बेचारा हारा आब शार
रौशन है पहाड़ इससे दरियाओं का है दिल
डूबती कश्तियों को देता किनारा आब शार
देवताओं की है देन ज़िन्दगी का है नूर
मत छेड़ो इसे देता है इशारा आब शार
वाह ... हर शेर लाजवाब है ... नाजुक एहसास लिए ...
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंक्या बात है मीनू जी
जवाब देंहटाएंShukriya seemant saurabh
जवाब देंहटाएंEnjoyed the poem ! But some words could not understand ! 😎😎😎😎! Will take tuition in Urdu
जवाब देंहटाएंगुड, लफ्जो को सही मुकाम दिया है
जवाब देंहटाएंवाह डॉक्टर साहिबा आपने बहुत ही बढ़िया लिखा है ! आपकी क़लम मे ताक़त है , लिखते और हमसे सांझा करते रहिए ! आपको ढेरो शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल 🙏🌹
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
Nice Post:- HindiSocial
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
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