अँधेरा गर अँधेरा है तो गहराता क्यूँ नहीं
सवेरा गर सवेरा है तो नज़र आता क्यूँ नहीं
ख्याल गर ख्याल है तो उतरे कागज़ पर
ये शेर ग़ज़ल बनने को मचल जाता क्यूँ नहीं
चाँद गर चाँद है तो चांदनी न खोये अपनी
लेकिन वो अमावस में पूरा नज़र आता क्यूँ नहीं
समुंदर गर समुंदर है तो हो और बेक़िनार
इसका हर कतरा मोती में ढल जाता क्यूँ नहीं
सितारा गर सितारा है तो चमके फ़ना से पहले
कोई जीते जी आसमाँ पर टिमटिमाता क्यूँ नहीं