दरख़्त उखाड़ फेंकने की भी होती है तहज़ीब
बता तो दो उसकी खता यह कहती है तहज़ीब
मज़हब हों या फूल सबकी अपनी क्यारी है
छेड़ने से इन दोनों की मर जाती है तहज़ीब
बिन बुलाये मेहमान सी बेवक़्त आ गयीं
यादों को आने की कब होती है तहज़ीब
दम तोड़ते ही लिटा दिया फर्श पर इंसान
बस शमशान तक साथ चलती है तहज़ीब
बेहतर है ये जहाँ अब ए मौला बाज़ीगर
साँसों की आजकल कपालभाति है तहज़ीब
शमा के पास ही होंगे हिसाब ए जफा ओ वफ़ा
परवाने को कब जलने की आती है तहज़ीब