मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

मदहोशियाँ






रंगीं खुशबुएँ बिखेरता इक शामों का पेड़ है
जरा संभल के चलना मदहोशियों का पेड़ है

सितारों का गजरा कैसे बिखर गया इस पे
चाँद भी हैरां है शायद जन्नतों का पेड़ है

आगाज़ ए शब की आहट से लगा झूमने
खुशगवार से नगमों और तरानों का पेड़ है

लुटा कर तमाम दौलत खुश होता है बहुत
दिलों के गुलशन में आशिकियों का पेड़ है

पत्ते भी बन जाते हैं लब अक्सर रातों में
हाले दिल कहता है सरगोशियों का पेड़ है

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

खुशबुएँ






राह के उस मोड़ पे इक खुशबुओं का पेड़ है
शाम की जुल्फों से खेलती हवाओं का पेड़ है

रात के दामन से गिर पड़ीं थीं कुछ आरजुएं
उन्हीं से पैदा हुआ है जुस्तजुओं का पेड़ है

जिन्स ओ जात का तो कुछ पता नहीं मगर
पता है तो बस इतना कि वफाओं का पेड़ है

अर्श भी बरसाता है इस पे रहमतें बूंदों सी
कभी कभी लगता है कि खुदाओं का पेड़ है

ख़ाक मल मल कर नहाता है बारिशों में
हर मौसम में खड़ा आजमाइशों का पेड़ है

कुछ खुशनुमा ख्वाब सो रहे हैं शाखों पर
सफर अंजाम है यही उन परिंदों का पेड़ है