शनिवार, 30 जुलाई 2016

आवारा आबशार

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दिल्लगियां करने लगा है मेरा आब शार
बलखाता इठलाता सा आवारा आब शार


फूल , तिनके , पत्ते  सबको साथ लेकर
बन बन भटकता है बंजारा आब शार


बहुत शोर करता है रातों की तन्हाई में
संगीत की धुन सा इकतारा आब शार


ठंडी रातों गरजती बिजलियों से डरता
तन्हाइयों का मारा है बेचारा आब शार


सैलाबों सा बहता दर्द की इक कहानी है  
बारिशों का मारा बेचारा हारा आब शार


रौशन है पहाड़ इससे दरियाओं का है दिल 
डूबती कश्तियों को देता किनारा आब शार


देवताओं की है देन ज़िन्दगी का है नूर 
मत छेड़ो इसे देता है इशारा आब शार