रविवार, 26 जनवरी 2014

बातें रातों की




गुल ,बुलबुलें, शबनम ,शाखें करते हैं बातें रातों की
झिलमिल तारे जाते जाते कह जाते हैं बातें रातों की

तेज़ हवाओं में भटका था कल रात कोई मुसाफिर
क़दमों के निशाँ चिरमिर पत्ते कहते हैं बातें रातों की

सिसकी थी फिर शमा और जला था फिर परवाना
बुझता दिया धुंए के निशाँ बता जाते हैं बातें रातों की

बहते पानी पर लिखीं थीं कल रात कुछ तहरीरें
बहती शाखों तिनकों पर  ढूंढते हैं बातें रातों की

ठन्डे बहुत थे तारे और खामोश बहुत था चाँद
बर्फ़ीली बूंदों ,सर्द हवाओं से पूछते हैं बातें रातों की