मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कतरे













वक्ती  साअतों  को आज  ज़मूद  कर  दूँ
ज़िन्दगी आ  तुझे मैं  नेस्तनाबूद  कर  दूँ

दरिया  किनारे  पड़ा है  सीपियों  का  ढेर
दर्द  के  हर  कतरे  को  वजूद  कर  दूँ

उड़ता  फिर  रहा  है  बेसबब  कब  से
क्यूँ  न  बादल  को आज बूंदा बूँद  कर दूँ

क़र्ज़  बकाया  है  अब  तक  गुलशन  का
अदा  पहले  खुशबुओं  का  सूद  कर  दूँ

रोज़  रोज़  निगला  करती  है आफताब
शब  में  छेद  कर आज इसे सुबूत  कर दूँ



गुरुवार, 26 जुलाई 2012

सरहदें





होता  नहीं है छूना आसान सरहदें 
कर देतीं हैं जिस्म लहूलुहान सरहदें 

सूनी आँखें  हैं और खुश्क  हैं  होंठ 
तपते इंसानों सी रेगिस्तान सरहदें 

हैं इतनी बे -आबरू  क्यूँ  न  रोयें 
जज्बातों का होती  हैं तूफ़ान  सरहदें 

हवा भी रुक जाती है यहाँ दो घड़ी 
कर देंगी  इसे भी कुर्बान  सरहदें 

गर्म लहू बहते बहते जमने लगा है 
बर्फ की परतों सी बेईमान सरहदें