शुक्रवार, 29 जून 2012

यतीम

हैं  आसमान  की  गहराईयाँ  यतीम
आवाज़  दो  कि  हैं  खामोशियाँ  यतीम

शरमाते  सूरज  का  बोझ  उठाती
हो गयीं शब  की  रुस्वाइयाँ  यतीम

निगल  रहे  रोज़ रोज़ आफताब  इंसान
जलते  जिस्मों  की  हैं कहानियाँ  यतीम

इक  सूखा  पत्ता  मिला  था किताबों  में
छोड़  आया  है पीछे  जवानियाँ  यतीम

इक  दस्तावेज़  पर  हैरां  है  दस्तखत
छोड़ गया  पीछे  ज़िन्दगानियाँ  यतीम

दो  किनारों  को  मिला  गयी  जाते  जाते
सूखती  नदी  की थीं  खुद्दारियाँ यतीम