मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कतरे













वक्ती  साअतों  को आज  ज़मूद  कर  दूँ
ज़िन्दगी आ  तुझे मैं  नेस्तनाबूद  कर  दूँ

दरिया  किनारे  पड़ा है  सीपियों  का  ढेर
दर्द  के  हर  कतरे  को  वजूद  कर  दूँ

उड़ता  फिर  रहा  है  बेसबब  कब  से
क्यूँ  न  बादल  को आज बूंदा बूँद  कर दूँ

क़र्ज़  बकाया  है  अब  तक  गुलशन  का
अदा  पहले  खुशबुओं  का  सूद  कर  दूँ

रोज़  रोज़  निगला  करती  है आफताब
शब  में  छेद  कर आज इसे सुबूत  कर दूँ



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