बुधवार, 21 मार्च 2012

आंसू










जज्बा गर दिल में ही दबाया होता
आँसू कोई यूँ ही तो न जाया होता

ज़रा सी तपिश से ही पिघल गया
रिश्ता मोम का तो न बनाया होता

दर्द था पिघल ही जाता धीरे धीरे
कोई अलाव तो न सुलगाया होता

हम तो चल ही पड़ते तेरा हाथ पकड़
इक बार मुड़ कर तो बुलाया होता

आंसुओं की कीमत पहचानी होती तो
आज तेरे घर खुशियों का सरमाया होता

6 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द तो धीरे धीरे पिघल जाता ...
    बहुत खूब ... सही कहा है ... धीरे धीरे ये दर्द कम हो ही जाता है ... समय के साथ साथ ...

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  2. ज़िन्दगी को ज़िन्दगी जाना होता
    मौत से पहले मौत का साया न होता

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  3. good lines.
    किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
    मिलते हाथ सबसे है दिल से दिल नहीं मिलते

    http://madan-saxena.blogspot.in/

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