सोमवार, 12 मार्च 2012

इल्जाम




खता किसी की इल्जाम हमारे सर पर
पता किसी का तूफ़ान हमारे घर पर

मुद्दतें गुजरीं सोचते खतावार है कौन
सुना इन्साफ भी होगा तुम्हारे दर पर

मिले कभी तो पूछेंगे हासिलातों को
अभी चलते हैं अपने अपने सफर पर

हर घर की सेहन की किस्मत है अलग
कहीं सर्द हवा है कहीं धूप शज़र पर

परिंदा उड़ेगा ही आख़िर फड़फड़ा कर
क्यों आसमाँ लिख दिया उसके पर पर

दूर तक फैला शहर सिमट आया है
क्यूँ न करे गुरुर रास्तों ओ हुनर पर

हयात ए दश्त भी पार कर ही लेंगे
काबू बनाये रखा अगर अपने डर पर

4 टिप्‍पणियां: