जज्बा गर दिल में ही दबाया होता
आँसू कोई यूँ ही तो न जाया होता
ज़रा सी तपिश से ही पिघल गया
रिश्ता मोम का तो न बनाया होता
दर्द था पिघल ही जाता धीरे धीरे
कोई अलाव तो न सुलगाया होता
हम तो चल ही पड़ते तेरा हाथ पकड़
इक बार मुड़ कर तो बुलाया होता
आंसुओं की कीमत पहचानी होती तो
आज तेरे घर खुशियों का सरमाया होता