सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

सिन्दूरी शाम







डूब  रहा  आफ़ताब  शर्म  से  लाल  है
छुईमुई  सी  शब  सोच कर  बेहाल  है

सिमट  सिमट  जाती  है  छूने  से  उसके
देख ये  मिलन  हुआ चाँद  भी  निहाल  है

वो  देखो  बैठी सिसक  रही  है  कोने  में
सहर  को  हुआ  जरूर  कोई मलाल  है

जीवन  भर जतन से  संजोया  था  जिसको
खो  दिया  पल भर  में और  हुई  कंगाल  है

न मिला आफ़ताब और न मिला माहताब 
ए खुदा तूने कैसा बिछाया ये जाल है 




मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कतरे













वक्ती  साअतों  को आज  ज़मूद  कर  दूँ
ज़िन्दगी आ  तुझे मैं  नेस्तनाबूद  कर  दूँ

दरिया  किनारे  पड़ा है  सीपियों  का  ढेर
दर्द  के  हर  कतरे  को  वजूद  कर  दूँ

उड़ता  फिर  रहा  है  बेसबब  कब  से
क्यूँ  न  बादल  को आज बूंदा बूँद  कर दूँ

क़र्ज़  बकाया  है  अब  तक  गुलशन  का
अदा  पहले  खुशबुओं  का  सूद  कर  दूँ

रोज़  रोज़  निगला  करती  है आफताब
शब  में  छेद  कर आज इसे सुबूत  कर दूँ



गुरुवार, 26 जुलाई 2012

सरहदें





होता  नहीं है छूना आसान सरहदें 
कर देतीं हैं जिस्म लहूलुहान सरहदें 

सूनी आँखें  हैं और खुश्क  हैं  होंठ 
तपते इंसानों सी रेगिस्तान सरहदें 

हैं इतनी बे -आबरू  क्यूँ  न  रोयें 
जज्बातों का होती  हैं तूफ़ान  सरहदें 

हवा भी रुक जाती है यहाँ दो घड़ी 
कर देंगी  इसे भी कुर्बान  सरहदें 

गर्म लहू बहते बहते जमने लगा है 
बर्फ की परतों सी बेईमान सरहदें


शुक्रवार, 29 जून 2012

यतीम

हैं  आसमान  की  गहराईयाँ  यतीम
आवाज़  दो  कि  हैं  खामोशियाँ  यतीम

शरमाते  सूरज  का  बोझ  उठाती
हो गयीं शब  की  रुस्वाइयाँ  यतीम

निगल  रहे  रोज़ रोज़ आफताब  इंसान
जलते  जिस्मों  की  हैं कहानियाँ  यतीम

इक  सूखा  पत्ता  मिला  था किताबों  में
छोड़  आया  है पीछे  जवानियाँ  यतीम

इक  दस्तावेज़  पर  हैरां  है  दस्तखत
छोड़ गया  पीछे  ज़िन्दगानियाँ  यतीम

दो  किनारों  को  मिला  गयी  जाते  जाते
सूखती  नदी  की थीं  खुद्दारियाँ यतीम



शनिवार, 5 मई 2012

आकाश








जिस्म  में  गहरे  उतर  आया  आकाश
चाँद  मगर  साथ  नहीं  लाया  आकाश

टकराता  रहता  है  दिल के कोनों से
संभालो  उसे  देखो  लड़खड़ाया  आकाश

उस  पार  से  आई  है  आज  कैसी  सदा
झूम  झूम  के  नाचा  और  गाया  आकाश

कुछ   तो  नज़र  आया  है  अँधेरे  से  परे
बेवजह  ही  नहीं  झिलमिलाया  आकाश

सहम  गाया  है  देखकर  दिल  के  सन्नाटे
आ  तो  गया पर   बड़ा  पछताया  आकाश

आदत  पड़  गयी  है  आफताब  की  इसे
इतने  दिन  दूर  रहकर  घबराया  आकाश

खामोश  ही  सही  ज़िन्दगी  चलती  तो  है
नस  नस  में  जब  से  समाया  आकाश

सर्द  रिश्तों  को  देख  सहमा  हुआ  था
जरा  सी  तपिश  से  पिघल  गया  आकाश

इक  दिन  बैठाया  था  हथेली  पर  उसे
लकीरों  को  देखते  ही  उड़  गया  आकाश







मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

क्यूँ नहीं





अँधेरा  गर  अँधेरा  है  तो  गहराता  क्यूँ  नहीं
सवेरा  गर  सवेरा  है  तो  नज़र आता  क्यूँ  नहीं

ख्याल  गर  ख्याल  है  तो  उतरे  कागज़  पर
ये  शेर  ग़ज़ल  बनने  को  मचल  जाता  क्यूँ  नहीं

चाँद  गर  चाँद  है  तो  चांदनी  न  खोये  अपनी
लेकिन वो  अमावस  में  पूरा  नज़र  आता  क्यूँ  नहीं

समुंदर  गर  समुंदर  है  तो  हो  और  बेक़िनार
इसका  हर  कतरा  मोती  में  ढल  जाता  क्यूँ  नहीं

सितारा  गर  सितारा  है  तो  चमके  फ़ना  से  पहले
कोई  जीते  जी  आसमाँ पर टिमटिमाता  क्यूँ  नहीं


बुधवार, 21 मार्च 2012

आंसू










जज्बा गर दिल में ही दबाया होता
आँसू कोई यूँ ही तो न जाया होता

ज़रा सी तपिश से ही पिघल गया
रिश्ता मोम का तो न बनाया होता

दर्द था पिघल ही जाता धीरे धीरे
कोई अलाव तो न सुलगाया होता

हम तो चल ही पड़ते तेरा हाथ पकड़
इक बार मुड़ कर तो बुलाया होता

आंसुओं की कीमत पहचानी होती तो
आज तेरे घर खुशियों का सरमाया होता

सोमवार, 12 मार्च 2012

इल्जाम




खता किसी की इल्जाम हमारे सर पर
पता किसी का तूफ़ान हमारे घर पर

मुद्दतें गुजरीं सोचते खतावार है कौन
सुना इन्साफ भी होगा तुम्हारे दर पर

मिले कभी तो पूछेंगे हासिलातों को
अभी चलते हैं अपने अपने सफर पर

हर घर की सेहन की किस्मत है अलग
कहीं सर्द हवा है कहीं धूप शज़र पर

परिंदा उड़ेगा ही आख़िर फड़फड़ा कर
क्यों आसमाँ लिख दिया उसके पर पर

दूर तक फैला शहर सिमट आया है
क्यूँ न करे गुरुर रास्तों ओ हुनर पर

हयात ए दश्त भी पार कर ही लेंगे
काबू बनाये रखा अगर अपने डर पर

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

ऐतबार




दिल का कभी कभी ज़रार होना जरुरी है
करार पाने के लिए बेकरार होना जरुरी है

रास्ते तो रास्ते हैं चल पड़ते हैं कहीं भी
क़दमों पे अपने ऐतबार होना जरुरी है

ताज पहनने से कोई खुदा नहीं होता
ताज का पहले इफ्तिखार होना जरुरी है

उफनता है दरिया तब बनती हैं गौहरें
हर मौज का बेइख्तियार होना जरुरी है

रौशनी हमसफ़र हो हर मोड़ हर सफर
क्या अंधेरों का उस पार होना जरुरी है

ऐ वक़्त तुझे भी दे देंगे शिकस्त हम
साँस की धीमी रफ्तार होना जरुरी है

छलक उठा गम दीवानों का महफ़िल में
छुपाने को मजनू सा बीमार होना जरुरी है

परेशां हो दर बदर गाफिल से सहरा में
हौसलों में सराब का शुमार होना जरुरी है

आबलापाई होगा गर अकेला होगा दश्त में
साथ कारवां ओ असफार होना जरुरी है

मंजिल पाने को तो दौड़ते हैं सभी मगर
मुकद्दर ओ वक़्त बेशुमार होना जरुरी है

सोमवार, 2 जनवरी 2012

पसंद





बेकली तो बहुत थी और सच्ची ख्वाहिशमंद थी
पर हर वो चीज़ न मिल सकी जो मुझे पसंद थी

कोई गुप्त कारवाई चल रही थी अन्दर
बहुत खटखटाया दरवाज़ा मगर ताली बंद थी

ऐसी ऐसी मौजें उठीं कि तड़प उठे साहिल
दरिया को तो बस जैसे दीवानगी पसंद थी

निकला जब सूरज तो फट पड़े बादल
पड़ा हो कोई परदा रौशनी ऐसी मंद थी

जाना था पूरब में ली गयी वो पश्चिम
हवा भी जाने कैसी बेगैरत और बेसमंद थी

फिकर कर कर जिकर किया था उम्र भर
जिकर का जब काम आया धड़कन बंद थी

जिकर - अभ्यास