शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

मन

पहाड़  पर जमी  बर्फ  सा होता है मन
धीमे  धीमे  पिघलता  रहता  है  मन

कलेजे  पर पत्थर  सा रखा  हो जैसे
सरकाने  से  हल्का  होता  है  मन

यादों  का  धुआं  धुंधलाने  भी  दो
देख  शरर  धुँए  के  सुलगता  है  मन

सर्द धूप  के इक  टुकड़े  की खातिर
छत के  कोनों  की  तरफ़  भागता है मन

 पलक  झपकते  ही  पल  भर  में
सात समुंदर  पार  घूम  आता है  मन

कितने  ही  बंद  करो  जिस्म  के  दरीचे
बेकाबू  खरगोश  सा  कूद  जाता  है  मन

5 टिप्‍पणियां:

  1. meenu di
    kya baat hai-----nihayat hi khoobsurati avam gahan tareeke se man ko bahut hi sundarta se
    paribhashhit kiya hai.
    bahut bahut badhai
    poonam

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  2. सच... मन पल में कहाँ से कहाँ जा पहुँचता है...... बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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  3. I enjoy, cause I found exactly what I was taking a look for.

    You have ended my four day lengthy hunt! God Bless you man. Have a
    nice day. Bye

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