बुधवार, 10 अगस्त 2011

आज़ादी





राम  ओ रहीम  की बात  ख्याल  ए खाम  हो  चली  है
सियासती  बुग्ज़  में  दब  शहीद  ए  आम  हो  चली  है

शोब्दाकारों  के  शोर  से  हैरां हैं  संसद  की  दीवारें
दरकने  लगीं  शायद  इनकी  भी  शाम  हो  चली  है

अब  के  शतरंज  में  पियादे  न  काले  न  सफ़ेद
आँखों  की  रोशनी  जैसे  तमाम  हो  चली  है

आखिरी  चिराग   है  अपने  दामन  का  सहारा  दे  दो
की  हर  दरीचे  से  आती  हवा  इमाम  हो  चली  है

आज़ादी  तेरे  नाम  पर  कुछ  नामचीनों  की  बदमिज़ाजी 
मेरे  अजीजों  की  शहादत   जैसे  इल्जाम  हो  चली  है 

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इस रचना में ।

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  2. बहुत संदर लिखा है आपने ........

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  3. minu di
    bahut bahut hi lajwaab lagi aapki yerachna
    man ko bhigo gai.
    bahut hi badhiya abhivykti
    sadar naman
    poonam

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