सोमवार, 16 मई 2011

तहज़ीब












दरख़्त उखाड़ फेंकने की भी होती है तहज़ीब
बता तो दो उसकी खता यह कहती है तहज़ीब

मज़हब हों या फूल सबकी अपनी क्यारी है 
छेड़ने से इन दोनों की मर जाती है तहज़ीब 

बिन बुलाये मेहमान सी बेवक़्त आ गयीं 
यादों को आने की कब होती है तहज़ीब 

दम तोड़ते ही लिटा दिया फर्श पर इंसान 
बस शमशान तक साथ चलती है तहज़ीब 

बेहतर है ये जहाँ अब ए मौला बाज़ीगर 
साँसों की आजकल कपालभाति है तहज़ीब  

शमा के पास ही होंगे हिसाब ए जफा ओ वफ़ा 
परवाने को कब जलने की आती है तहज़ीब 

16 टिप्‍पणियां:

  1. दरख्तों को उखाड़ फेंकने की भी होती है तहजीब .... मीनू जी , क्या भावनात्मक बात रखी है आपने ... पूछ तो लो दरख्तों से , कह तो दो

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  2. मज़हब हों या फूल सबकी अपनी क्यारी है
    छेड़ने से इन दोनों की मर जाती है तहज़ीब


    वाह ...बहुत सुन्दर गज़ल ..

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  3. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर बहुत मर्मस्पर्शी और उम्दा..

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  4. नए अंदाज़ में एक बेहतरीन गज़ल. आभार .

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन रचना ।

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  6. बहुत सुंदर ग़ज़ल ...हर शेर हृदयस्पर्शी है....

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  7. बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल ...बेहद शानदार अशआर.....

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  8. di
    kin panktiyon ki tarif karun .har ek panktiyan bemisaal . bahut bahut achhi lagi aapki gazal .ek sachchai ko bayan karti alag si post .
    bahut bahut badhai
    sadar naman
    di idhar net par kuchh gadbad mamla chal raha hai .isi liye koi comments kahin bhi post nahi kar paai .vilamb ke liye xhma chahti hun
    poonam

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  9. सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल .

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  10. सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल .

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  11. मज़हब हो या फूल सबकी अपनी क्यारी है ....
    ये ग़ज़ल बेहद प्यारी है .आभार .

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  12. खुबसूरत गज़ल हर शेर शानदार .......बहुत खूब

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  13. लाजबाब बेहतरीन प्रस्तुति.
    पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    आपके सुन्दर गहन भावों से पूर्ण अभिव्यक्ति
    पढकर बहुत अच्छा लगा.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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