सूरज को शिकस्ता किया ये क्या किया
दिन को रात किया और बेजिया किया
तुम्हारी आँखों में तो बची है ताबिंदगी
पता करो किसने बेमानी तजुर्बा किया
खाली ज़हन का होगा फलसफा कोई
खुदा बनने की चाह में मोज़ज़ा किया
सूरज में जलने का मज़ा कुछ और है
इताब में आकर मज़ा बेमज़ा किया
जुड़ने लगे आपस में सूरज के टुकड़े
शुआओं के आगे जब सजदा किया
कायनात खिल उठी खुदा की फिर से
बेवजह ही तो नहीं उसने जिया किया