बुधवार, 23 मार्च 2011

सूरज






सूरज को शिकस्ता किया ये क्या किया 
दिन को रात किया और बेजिया किया 

तुम्हारी आँखों में तो बची है ताबिंदगी 
पता करो किसने बेमानी तजुर्बा किया 

खाली ज़हन का होगा फलसफा कोई 
खुदा बनने की चाह में मोज़ज़ा किया 

सूरज में जलने का मज़ा कुछ और है 
इताब में आकर मज़ा बेमज़ा किया 

जुड़ने लगे आपस में सूरज के टुकड़े 
शुआओं के आगे जब सजदा किया 

कायनात खिल उठी खुदा की फिर से 
बेवजह ही तो नहीं उसने जिया किया 


रविवार, 6 मार्च 2011

सड़क




अपनी तो ज़िन्दगी है यारों सड़कों पे 
कभी याद आये तो पुकारो सड़कों पे 

शमा रोशन करने चली है दूसरा घर 
डोली उठाने आओ कहारों सड़कों पे 

देखना है सफ़र घड़ी दो घडी और 
ज़रा धीमे से चलो रफ्तारों सड़कों पे

कुछ ख्वाब हुए और कुछ धुआं हुए  
मिले थे हमसफ़र हजारों सड़कों पे 

जाने कहाँ पहुँचने की जल्दी है तुम्हें 
रात भर चलते हो मुसाफिरों सड़कों पे