शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

हवा












कैसे मालूम हो कि हवा हवा है 
आज वो चल रही बेसदा बेनवा है 

साँस चल रही है हवा ही होगी 
पत्ता भी अभी पेड़ से हुआ जुदा है

अहसासों का चेहरा नहीं होता मगर 
दिल को पता है कि मायूस फ़िज़ा है 

हवाओं का भी जरुर होता है तन 
जिस्म है सर्द किसी ने तो छुआ है 

सराब पे लिखा था नाम मिट गया 
न कोई दिशा है न कोई  निशाँ है 

बुझते अलाव सुलग उठे फिर से 
मुझे यकीन आ गया जरुर हवा है 


गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

अरमां




दूर पहाड़ों पे न जाने कितनी बर्फ बाकी है
जल्दी नहीं पिघलती इसका मतलब काफी है

संग मौसमों के पिघलता रहता है जिस्म
दिल में कोई अरमां कोई ख्वाब अभी बाकी है

दरिया पार से आ रही है कोई सदा
दूर ज़जीरे पे शायद ज़िन्दगी अभी बाकी है

कैद किया मुट्ठी में आफ़ताब का टुकड़ा
अंदाज़ा सही निकला गर्मी अभी काफी है

शाम धुंधलाने लगी है दोपहर से ही
शहर का सड़कों पे फिसलना अभी बाकी है

पैमाना मचल मचल के छलक उठा है
लबों तक आने नहीं देता कैसा साकी है

नफरत




नफ़रत तो नफरत है क्या यहाँ क्या वहाँ है
हर दिल में आग है और हर तरफ धुआं है

अगर मज़हब ही इसकी वजह है तो देखो
ज़िंदा खड़ा है मज़हब और मिट रहा इंसां है

बारूद  के ढेर पर खड़ा है हर आदमी
ना जाने किस गोली पर मौत का निशाँ है

देश को जख्म दे रहा देश का हर आदमी
सरहदों पर जख्म खाता देश का जवाँ है

मुट्ठी भर राख की खातिर किया कमाल है
ख़ुदा के घर जाते वक़्त आखिरी निशाँ है

बदहवास से परिंदे भटक रहे हैं दर बदर
मिटा दिया जो तूने उनका भी आशियाँ है

अहवाल ए बशर क्या पूछ रहा  है मौला
पूजा जाता  बुत यहाँ  जल रहा इन्सां है

मौत खुल्ला खेल और ज़िन्दगी इक हादसा
यकीं आ गया तेरा ही बनाया ये जहाँ है