कैसे मालूम हो कि हवा हवा है
आज वो चल रही बेसदा बेनवा है
साँस चल रही है हवा ही होगी
पत्ता भी अभी पेड़ से हुआ जुदा है
अहसासों का चेहरा नहीं होता मगर
दिल को पता है कि मायूस फ़िज़ा है
हवाओं का भी जरुर होता है तन
जिस्म है सर्द किसी ने तो छुआ है
सराब पे लिखा था नाम मिट गया
न कोई दिशा है न कोई निशाँ है
बुझते अलाव सुलग उठे फिर से
मुझे यकीन आ गया जरुर हवा है