रविवार, 29 अगस्त 2010

प्यास


सांस सांस में जैसे कोई आस है जिंदा
जीते हैं हम या कोई अहसास है जिंदा

मर गया था रिश्ता फ़िर से जी उठा वो
कोई अनकही अधूरी सी आस है जिंदा

यादों को जब भी खोला तो पाया मैंने
कोई चेहरा अब भी आस पास है जिंदा

मौजें आ आकर टकरातीं हैं रोज़ रोज़
फ़िर भी साहिलों में इक प्यास है जिंदा

नापाक इरादों में शामिल तुम न होना
गर कुछ ज़मीर तुम्हारे पास है जिंदा

सिर्फ धडकनें गिनना नहीं है ज़िन्दगी
यूँ तो पत्थर भी पत्थर के पास है जिंदा



शनिवार, 21 अगस्त 2010

दिशायें

हर कदम हर मोड़ हैं हज़ार दिशायें
कहने को होती हैं बस चार दिशायें

मेरी दिशायें जहाँ तक मेरी नज़र
यूँ तो हैं पहाड़ों के भी पार दिशायें

जरुर इनकी भी होती होंगी आँखें
तभी हो जातीं हैं आर पार दिशायें

ज़मीन आस्मां के मिलन की गवाह
हुईं शर्म से लाल तार तार दिशायें

भटका मुसाफिर या तूफाँ में सफीना
अँधेरों में होती हैं मददगार दिशायें

कर दो आजाद इन्हें सुई की नोक से
इन्सां तेरी कब से हुईं कर्जदार दिशायें

शनिवार, 7 अगस्त 2010

शज़र






शज़र की शाख ए सरमदार है वो
इसलिए झुक जाती हर बार है वो

साहिब ए सुरूर है कोई आसमां में
कैसी नूरानी चमक से सरशार है वो

जल जल कर भी खुश है परवाना
जीत छुपी जिसमें ऐसी हार है वो

इन्तहा ए दर्द से ही जन्मा होगा
याकूत के सीने का आबशार है वो

मोज़ज़े दिखाया करता है रोज़ रोज़
आलम है कि आलम ए दीगार है वो

हर्फ़ ओ हिकायत में सिखा गया
जरुर कोई करीबी रिश्तेदार है वो