जब जब चला करती है हवाए सर्द कहीं
बरसती है दूर पहाडों पे ठंडी बर्फ कहीं
कोई कहे बहरे फ़ना कोई ऐशे दुनियाँ
हैं खुशियाँ कहीं तो है बेइंतेहा दर्द कहीं
ख़ाक में से भी भड़क उठती है चिंगारी
कर ले जब्त सीने में जज्बे ज़र्फ़ कहीं
वक़्त रहते ही दिखाओ इल्म ओ फन
पड़े पड़े हो जाये न आब ए गर्क कहीं
सब राज अफशां हो जायेंगे यकबारगी
छुपा के रखना दिल ही में वो हर्फ़ कहीं
सितारे झिलमिल नहीं करते आजकल
मानो खो गया हो इनका भी वर्क कहीं