शनिवार, 27 नवंबर 2010

शहर







सर्द कोहरे में छुप जाता है शहर
आजकल बड़ी देर तक सोता है शहर

आएगी जरुर कुछ देर में आएगी
सहर का इंतजार करता है शहर

जाग उठे पत्ते खिल उठे हैं गुल
धूप को देख मुस्कुराता है शहर

सर्द हैं रातें कुछ सहमी सहमी सी
फुटपाथ पर करवटें बदलता है शहर

रेंगती हैं सडकें सोये सोये से मोड़
रात जुगनुओं सा टिमटिमाता है शहर

सर्द कोहरा भी सुलगने लगा है
रोज़ नए ज़ख्म जो खाता है शहर

बर्फीली वादियों रोक लो जज़्बात
तुम्हारे पिघलने से धुंधलाता है शहर

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

पनाहगाह







आशोब ए दिल कुछ कम है आज
क्या खारिज अज जिस्म गम है आज

रगों में जब्त हैं शोरिश ए कर्ब
सुन कर साँसें भी बेदम हैं आज

नब्ज़ ए हयात चल रही है मुसलसल
मौत भी हमनफस हमसनम है आज

दायरा ए आफाक पूरा तो कर लूँ
नुक्ता न लगाना लम्हों कसम है आज

बेनवा हवाओं सी घुस आयीं लहू में
तमन्नाओं का पनाहगाह जिस्म है आज

शनिवार, 13 नवंबर 2010

ज़िन्दगी




ज़िन्दगी के पैर न सही मगर चलती तो है
उड़ने को पर न सही मगर उड़ती तो है

हरेक का नसीब नहीं कश्ती पार लगाना
हर लहर आखिरन आखिरी होती तो है

रिश्तों की पोटलियाँ फेंकता जाता है खुदा
गिरहें खोलते खोलते उम्र गुजरती तो है

मुंह जल गया है और छाले पड़ गए हैं
सहर रोज़ रोज़ आफताब उगलती तो है

ज़र्रे ज़र्रे को बख्श दी है जो प्यास तूने
इससे खुदा तेरी खुदाई चमकती तो है

मक्खियाँ जिस्म पर फुटपाथ पर पड़ा है
मौत भी पास आते कुछ झिझकती तो है