शनिवार, 21 अगस्त 2010

दिशायें

हर कदम हर मोड़ हैं हज़ार दिशायें
कहने को होती हैं बस चार दिशायें

मेरी दिशायें जहाँ तक मेरी नज़र
यूँ तो हैं पहाड़ों के भी पार दिशायें

जरुर इनकी भी होती होंगी आँखें
तभी हो जातीं हैं आर पार दिशायें

ज़मीन आस्मां के मिलन की गवाह
हुईं शर्म से लाल तार तार दिशायें

भटका मुसाफिर या तूफाँ में सफीना
अँधेरों में होती हैं मददगार दिशायें

कर दो आजाद इन्हें सुई की नोक से
इन्सां तेरी कब से हुईं कर्जदार दिशायें

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