गुरुवार, 29 जुलाई 2010

आब शार






दिल में मेरे इक आब शार बहने लगा
वो मुझसे पहाड़ों की बातें करने लगा

खुशबुएँ साथ लाया था फिजाओं की
रफ्ता रफ्ता नस नस में महकने लगा

आब ओ हवा रास ना आई देर तक
बन के आब ए चश्म वो उमड़ने लगा

फिर धुआं बन उड़ चला इक दिन वो
दिल बुझते शोलों सा सिसकने लगा

आब दारी निभाने आएगा वो फिर से
अक्स ए गम ए यार मुझे कहने लगा

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

जिस्म




सांसों और धडकनों की साजिश है जिस्म
रग रग में सुर्ख रंग की आराइश है जिस्म

गला दबाया हो जैसे और घुट रही हों सांसें
इन्तहा ए दर्द की ही तो पैदाइश है जिस्म

रिश्तों के जंगल में खड़ा है इक दरख़्त सा
गुलों शाखों पत्तों सी आज़माइश है जिस्म

बाहें पसारे खड़ी हैं दोनों तरफ बेमुर्रव्वत
हयात और कज़ा की फरमाइश है जिस्म

आसमान जो कुछ और बह चले दरीचों से
इक मुट्ठी खामोशी की गुंजाइश है जिस्म