शनिवार, 10 अप्रैल 2010

जंगली फूल










जंगली फूलों की इसमें क्या खता है
खुशबू नहीं उनमें ये उन्हें भी पता है

जड़ ओ जमीन ही बेतासीर हों अगर
गुल बेचारा बेवजह ताउम्र ही रोता है

इंसानों के चेहरे होते हैं अलग अलग
दिल भी सबका एक सा कहाँ होता है

दरिया किनारे दरख्त मुरझाने लगे हैं
बादल भी अब तो सहरा पे बरसता है