रविवार, 15 नवंबर 2009

हिसाब









कहा माहताब ने जाते समय बता कर तो जाया करो
कहा आफताब ने बड़ी ठण्ड है थोड़ा जल्दी आया करो

कहा माहताब ने न हों गर हम तो क्या दिन क्या रात है
कहा आफताब ने न करो इतना गुरुर उसकी कायनात है

कहा माहताब ने परेशान न करो टुकडों में बिक रहा हूँ
कहा आफताब ने धुंए और धुंध से तो मैं भी डर गया हूँ

कहा माहताब ने छतों पर यूँ खुलेआम न घूमा करो
कहा आफताब ने चोरी छुपे खिडकियों से न झाँका करो

कहा माहताब ने ओस की बूँदें तुमसे क्यूँ शर्माती हैं
कहा आफताब ने तुम्हीं पूछो मुझे तो नहीं बताती हैं

कहा माहताब ने ये हैं मेरे आंसूं इन्सां समझता पानी है
कहा आफताब ने छुपा लो दिल में आखिरी निशानी है

कहा माहताब ने तुमसे बातें करके बड़ा अच्छा लगा
कहा अफताब ने सितारों के होते भी तू मुझे तन्हा लगा

कहा महताब ने जल्दी चले जाना वक्त पर आ जाऊँगा मैं
कहा आफताब ने गर्मियों में हिसाब बराबर कर पाऊंगा मैं