रविवार, 13 सितंबर 2009

जज़्बात













पूछा मैंने बादलों को क्या हुआ कहीं भी कभी भी बरस पड़ते हैं
कहा उसने वो हवाओं की बेचैनियों और नमियों को पढ़ लेते हैं

पूछा मैंने आसमां इतने गहरे और खामोश क्यूँ हुआ करते हैं
कहा उसने चाँद तारों के गम उनके सीने में जो जज्ब रहते हैं

पूछा मैंने खामोश सहराओं में अचानक गुल कैसे खिलते हैं
कहा उसने सराबों के अरमां भी कभी तो मचल ही सकते हैं

पूछा मैंने कायनात के कुछ ज़र्रे बेइंतेहा कैसे चमक उठते हैं
कहा उसने वो तिश्नगियों की तमाम हदें जो पार कर लेते हैं

7 टिप्‍पणियां:

  1. सच! क्या दिव्य अणु मन है आपका जो मरीचिका में भी जल की धारा बहा सकता है
    सराबों के अरमां क्या, पूरी कायनात का ज़र्रा ज़र्रा महका भी चमका भी सकता है।

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  2. शायरा के अणु मन ने मरू भूमि में पुष्प खिलाये, उसने पहले झरना भी तो बहाया है
    आपने कहा आसमां खामोश, आपकी ग़ज़ल में ऐसा लगा जैसे आसमां ने भी गीत गाया है

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  3. शायरा के अणु मन ने मरू भूमि में पुष्प खिलाये, उससे पहले झरना भी तो बहाया होगा
    आपने कहा आसमां खामोश, आपकी ग़ज़ल में ऐसा लगा जैसे आसमां ने गीत भी गाया होगा

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  4. शायरा के अणु मन ने मरू भूमि में पुष्प खिलाये, उससे पहले झरना भी तो बहाया होगा
    आपने कहा आसमां खामोश, आपकी ग़ज़ल में ऐसा लगा जैसे आसमां ने भी गीत गाया होगा

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  5. इतनी सुबह सुबह सुंदर comment पढ़ कर मेरी सुबह सुहानी हो गयी , धन्यवाद के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं , हौसला अफज़ाही के लिए तह ए दिल से शुक्रिया ☺

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  6. Subah subah itne sunder comments dekhkar merit subah kitni suhani ho gayi ise shabdon mein bayaan nahin kar sakti

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